28 दिसंबर, 2019
नयी दिल्ली
देश भर में जब छात्र और युवा नागरिकता कानून में हुए संशोधन (सीएए) का विरोध
करने के लिए सड़कों पर शांतिपूर्ण तरीके से उतरे हुए हैं और जिस तरीके से नरेंद्र
मोदी की सरकार राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर
(एनपीआर) को साथ में लागू करने की मंशा रखती है, इस बीच पुलिस ने उन
मीडियाकर्मियों के खिलाफ हिंसक प्रतिक्रिया दी है जो देश भर में युवाओं के इस
आंदोलन को रिपोर्ट कर रहे थे। पुलिस की यह
अराजक कारर्वाई और बरताव निंदनीय है जो दिखाता है कि यह स्पष्ट रूप से स्वतंत्र
रिपोर्टिंग को रोकने और दबाने का एक प्रयास है।
जिनके हाथ में कानून व्यवस्था को लागू करने की जिम्मेदारी थी उन्होंने कुछ
खास राज्यों की सरकारों के साथ मिलकर जैसा व्यवहार किया है, वह दिखाता है कि वे
संदेशवाहक को ही निशाना बनाने पर आमादा हैं। ध्यान देने वाली बात है कि
प्रदर्शनकारियों और मीडियाकर्मियों दोनों के खिलाफ ही सबसे बुरे हमले उन राज्यों
में हुए हैं जहां भारतीय जनता पार्टी का शासन है, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में,
जहां सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं। शांतिपूर्ण छात्रों को सार्वजनिक संपत्ति नष्ट करने वाले तत्वों के रूप में दिखाकर पुलिस ने कुछ के खिलाफ फर्जी मुकदमे भी दायर
किए हैं, जिनमें अल्पसंख्यक समुदाय के छात्र भी शामिल हैं। इसी तरह पुलिस
पत्रकारों को निष्पक्ष तरीके से अपना काम करने से रोक रही है। अंतरराष्ट्रीय
मीडिया प्रतिष्ठानों और यहां तक कि आम तौर से सरकार समर्थक समाचार एजेंसियों के
लिए काम कर रहे पत्रकारों को भी पुलिस ने नहीं बख्शा है।
पुलिस की यह कार्रवाई दरअसल पिछले पांच वर्षों के दौरान मोदी सरकार द्वारा
बरती गयी असहिष्णुता की लीक पर ही है। इस अवधि में ज्यादातर मीडिया को सरकारी विज्ञापन
एजेंसियों और जन संपर्क एजेंसियों में तब्दील कर दिया गया। मुट्ठी भर पत्रकार
हालांकि अब भी ऐसे हैं जो सत्ता के समक्ष सच कहना चाहते हैं लेकिन उनके संस्थानों
को या तो वित्तीय रूप से कमज़ोर किया जा चुका है या फिर घुटने टेकने को मजबूर किया
जा चुका है। जून 1975 से जनवरी 1977 के बीच 19 महीने की अवधि में इंदिरा गांधी की
सरकार द्वारा लगाये गये आपातकाल के अलावा देखें तो कभी भी भारतीय संविधान के
अनुच्छेद 19(1)(क) में वर्णित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को इस बुरे
तरीके से दमित नहीं किया गया जैसा वर्तमान में हो रहा है। हालात को और बुरा बनाने
में सोशल मीडिया काम आ रहा है जिसे मौजूदा सत्ता के समर्थन में दुष्प्रचार के एक औज़ार
में तब्दील कर दिया गया है।
देश में हर सच्चे व विवेकवान इंसान को मीडियाकर्मियों के खिलाफ हुई पुलिस
कार्रवाई का कड़ा विरोध करना चाहिए तथा देश भर की सड़कों पर दैनंदिन घट रहे सच
को जस का तस रिपोर्ट करने के उनके अधिकार व कर्तव्य का समर्थन करना चाहिए। अन्यथा,
हमें खुद को लोकतंत्र कहना बंद कर देना चाहिए− वो भी दुनिया का सबसे बड़ा
लोकतंत्र− चूंकि सत्ता में बैठे लोगों द्वारा असहमत स्वरों को बर्बर तरीके से
दबाने के प्रयास बहुसंख्यकवादी, तानाशाही और फासिस्ट तरीकों से जारी हैं।
पत्रकारों पर हमले के विरुद्ध समिति नागरिकता संशोधन कानून की कवरेज के
दौरान पत्रकारों पर हुए हमलों की कड़े से कड़े शब्दों में निंदा करती है और
पत्रकार बिरादरी से अनुरोध करती है कि वे भारत के संविधान में वर्णित अभिव्यक्ति
की स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करें।
आनंद स्वरूप वर्मा
एके लारी
परंजय गुहा ठाकुरता
राजेश वर्मा
संतोष गुप्ता
शेष नारायण सिंह
(CAAJ की वक्तव्य समिति)
Twitter: https://twitter.com/caajindia
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